Saturday, September 29, 2012

Tehelka - सुर कल्पना - अनुपमा की रिपोर्ट.


मूल रूप से असमिया और असम में ही पली-बढ़ी कल्पना पटवारी पर भोजपुरी का रंग कुछ ऐसा चढ़ा कि आज वे भोजपुरीभाषी इलाके के घर-घर में जाना जाने वाला नाम हैं.अनुपमा की रिपोर्ट.
'लोग मुझे कल्पना नाम से जानते हैं. पूरा नाम है कल्पना पटवारी. असमिया नौटंकी और जतरा के प्रतिष्ठित कलाकार विपिन पटवारी की बेटी हूं. असमी मूल की हूं. पढ़ाई वहीं हुई. शुरू में असमिया में गाया, लेकिन न असमिया फिल्म इंडस्ट्री को मेरी आवाज रास आई और न मैं ही उससे तारतम्य बिठा पाई इसलिए संघर्ष करने मुंबई चली गई. गाने का मौका मिला. कई भाषाओं में गाया, लेकिन भोजपुरी से चोली-दामन वाला रिश्ता बन गया. अब तो वही मेरी पहचान की सबसे बड़ी रेखा है.' सामने खड़े एक शख्स की ओर इशारा करते हुए कल्पना कहती हैं, 'ये मेरे पति परवेज हैं. ये भी असम के ही हैं. प्रेम विवाह है हमारा. हाल के दिनों में जिंदगी के सबसे सुखद पल देखने को मिले जब दो जुड़वां बच्चे हमारे घर आए. एक का नाम है अरस्तू,  दूसरे का आर्कमिडीज. अब यह न पूछिएगा कि इतने बड़े दार्शनिक और वैज्ञानिक का नाम रखने की वजह क्या है. कुछ बातें अपरिभाषित भी रहने दीजिए.' बिना औपचारिक मुलाकात और परिचय के ही कल्पना इतना सब कह जाती हैं. फिर बताती हैं, 'जानती हैं मैंने इतनी बातें क्यों बता दीं, क्योंकि ये सवाल तो आप करती हीं इसलिए इनसे पहले निपट लिए. अब सिर्फ अच्छी-अच्छी बातें करेंगे हम.' 
मैं कहती हूं, ‘अच्छी बातों से पहले एक और झंझटी सवाल इसी समय निपटा लेते हैं. जिंदगी का कोई बुरा अनुभव?’ गहरी सांस लेते हुए वे कहती हैं, ‘उन बुरे दिनों को याद नहीं करना चाहती. चार बहनों में मैं सबसे बड़ी थी. घर में चारों लड़कियां ही थीं. दिन भर घर के बाहर मनचलों का जमावड़ा लगा रहता था. कभी-कभी तो मवाली घर में पत्थर भी फेंकते थे. घुटन भरे दिन थे वे. बाहर निकलना दूभर रहता था.’ फिर बात बदलते हुए कल्पना कहती हैं, ‘छोडि़ए उन बातों को, मैं आपको दूसरी मजेदार बात बताती हूं. आज मुझे लोकसंगीत गायिका के तौर पर सब जानते हैं, लेकिन जब मैं छोटी थी और घर में दोतारा बजना शुरू होता था तो मैं भाग जाती थी इधर-उधर, छुपती रहती थी कि फिर दोतारे को पकड़कर बैठना पड़ेगा. मैं पॉप, रॉक, वेस्टर्न म्यूजिक की दीवानी थी और मेरे पिता जी दोतारा बजाने को कहते थे. मुझे ग्लैमरस संगीत भाता था और पिता जी लोकसंगीत के पीछे पड़े हुए थे.' इसके बाद कल्पना के चेहरे पर थोड़ी उदासी पसर  जाती है. वे कहती हैं, 'पिता अपनी संतानों के बारे में सब जानते हैं. मेरे पिता जी को मालूम रहा होगा कि मेरी मंजिल लोकसंगीत में ही है, इसलिए वे बचपन से ही पीछे पड़े रहते थे. काश! मैं तब ही इस बात को समझ गई होती तो और भी बहुत कुछ सीखती उनसे.’ 
कल्पना को रुआंसा देख इस बार बात मैं बदल देती हूं, 'परवेज कब से हैं आपके साथ?' कल्पना परवेज की ओर देखकर कहती हैं, ‘आठवीं क्लास में थी, तब के साथी हैं परवेज. तब से वैसे ही चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े रहते हैं. लेकिन तब प्रेम-फ्रेम जैसा कुछ नहीं था. एक लगाव शुरू से रहा. अधिकार भाव भी. जब भी मनचले परेशान करते, परवेज ही दिखते थे, जिनसे कुछ कह सकती थी. जब असमिया संगीत में मुझे खासा सफलता नहीं मिली और मैं मुंबई संघर्ष के लिए निकल पड़ी, तब भी मेरे साथ परवेज ही थे, लेकिन सच कह रही हूं, तब भी प्रेम जैसी कोई फीलिंग नहीं थी. हमारी मित्रता थी. मुंबई आए तो परवेज ही मेरे लिए काम की तलाश में भटकते रहे.’ यह बताते हुए कल्पना एक बार फिर परवेज की ओर देखती हैं और कहती हैं, ‘लेकिन अब तो जनाब मेरा प्यार भी हैं, मेरे पति भी और अरस्तू-आर्कमिडीज के पिता भी.’ यह कहकर वे हंस देती हैं. परवेज भी मुस्कुरा देते हैं. 
कई बार कल्पना पर भोजपुरी की अश्लील गायिका होने का ठप्पा भी लगा और ऐसा कहकर उन्हें खारिज करने वालों की एक जमात भी सामने आई
मुंबई में कुछ माह भटकने के बाद कल्पना को कहीं-कहीं कुछ काम मिला और इसी दरमियान एक भोजपुरी गीत भी गाने को मिला. पहली बार भोजपुरी में गाया- हमसे भंगिया ना पिसाई हो गणेश के पापा, हम नईहर जात बानीं.... .’  यह अलबम आया और कल्पना भोजपुरी की हो गईं.  उसके बाद वे कब, कैसे और किस-किस तरह से भोजपुरी मिट्टी में रमती गईं, यह खुद उन्हें भी नहीं पता. कल्पना कहती हैं, ‘अब तो उसी समाज की बेटी हूं, बहू हूं, वे मुझे वैसा ही प्यार और स्नेह देते हैं और मुझे भी यही अच्छा लगता है. संगीत जीवन में भोजपुरी एक आविष्कार की तरह आई थी और इसने मुझे इस कदर अपना लिया, यह बहुत तसल्ली देने वाली बात है.’
कल्पना जब खुद को भोजपुरी की बेटी कहती हैं तो यह अतिरेक जैसा भी नहीं लगता. भोजपुरी गीतों में पुरबी की जो खास विधा है, कल्पना ने उस विधा में इतने लोकप्रिय गीत गाए हैं कि वे वर्षों पहले गाए जाने के बावजूद आज भी पब्लिक डिमांड में उसी तरह बने रहते हैं. हालांकि इस बीच कल्पना पर  भोजपुरी की अश्लील गायिका होने का ठप्पा भी जोरदार तरीके से लगा और ऐसा कहकर उन्हें खारिज करने वालों की एक जमात भी सामने आई. लेकिन हालिया दिनों में कल्पना ने भोजपुरी में एक ऐसा बड़ा काम कर दिया है कि विरोधी भी पानी मांग रहे हैं और जो कल्पना के खिलाफ बोलते चलते थे उनके पास भी जवाब नहीं बचा है. भोजपुरी के लोकप्रिय गायन से परवान चढ़ी कल्पना ने बिहार के सबसे बड़े लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के गीतों को लेकर हाल ही में एक एलबम तैयार किया है. इसका नाम है द लेगेसी ऑफ भिखारी ठाकुर. 
इस एलबम के गीत सुनते हुए साफ अहसास होता है कि उसे तैयार करते हुए उन गीतों को गाते हुए कल्पना के मन में एक जुनून-सा रहा होगा. भोजपुरी के ठेठ अंदाज में कल्पना ने भिखारी के गीतों को सजीव बना दिया है. फिलहाल यह एलबम भारत के साथ दुनिया के उन तमाम मुल्कों में काफी चर्चा में है जहां भोजपुरी बोलने वाले मौजूद हैं. अश्लील गायिका होने की बात छिड़ते ही कल्पना मुस्कुराहट के साथ कहती हैं, 'यह तो समझ-समझ का फेर है लेकिन सच पूछिए तो शुरू में तो मैंने कुछ गीत सिर्फ वर्डिंग समझकर गा दिए थे, उनका भाव तक मुझे अच्छे से नहीं पता था, लेकिन बाद में मुझे ऐसे गीतों को लेकर दूसरी अनुभूति भी हुई. मैं सोचती हूं कि अगर मैं अपने गांव-समाज से बाहर रहने वाले मजदूरों के लिए गीत गाती हूं, दिन भर की थकान के बाद जब वे शाम को अपने घर पहुंचते हैं और उनकी बीवी साथ में नहीं होती और कुछ गीतों से उनकी यौन कुंठा शांत होती है तो यह गायन की सार्थकता ही है. हालांकि कल्पना इस विषय पर ज्यादा बात करने से बचती हैं. वे अपनी पसंद बताती हैं कि त्रिलोक गुर्टू और शोभा गुर्टू को डूबकर सुनती हैं. दीपेन राव उनके गुरु रहे हैं. लखनऊ के भातखंडे संगीत महाविद्यालय से भी उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली है. गायन में रोल मॉडल के बारे में वे  बताती हैं कि भूपेन हजारिका जैसी गहराई और ऊंचाई वाला कोई गायक उन्हें नहीं दिखता. 
कल्पना फिलहाल असम के भक्ति आंदोलन के दो महान प्रणेताओं श्रीमंत शंकर देवा और उनके शिष्य माधव देवा के गीतों को लेकर काम कर रही हैं. ठेठ असमिया वाद्य यंत्र कालिया वादन के प्रयोग के साथ. भोजपुरी में भिखारी के बाद अब क्या, इस सवाल पर कल्पना कहती हैं, ‘महेंदर मिसिर पर काम शुरू हो चुका है. इंतजार कीजिए. मिसिर जी पूरबी के बेताज बादशाह थे, मैं ठेठ अंदाज में निभाऊंगी उनके गीतों को.’ असम और हिंदी समाज का रिश्ता हाल के समय में गड़बड़ाया हुआ है. वहां मुसलिम समुदाय और दूसरे समुदाय के लोग भी आपस में टकरा रहे हैं. ऐसे में असमिया कल्पना का हिंदी इलाके में राज करना और उनका परवेज को अपना हमसफर बनाना एक मायने में सुकून भी देता है.

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